Thursday, September 6, 2012

संसार के समंदर में परेशानियों का गहरा पानी

अरुणिमा शर्मा (पत्रकार).  
http://www.bhaskar.com/rajasthan/jaipur/city-blogger/blog/100183   
जिंदगी कहीं पहुंचकर खत्म नहीं होती। जिंदगी थमती भी नहीं है। हां, यह निरंतर बदलती रहती है। हम गौर करें तो पाएंगे कि रोजाना असंख्य लोग मरते और पैदा होते हैं। न किसी के आने से, न किसी के जाने से दुनिया का कार्य-व्यापार रुकता है। यदि हमारा कोई करीबी चला जाता है, तो हमें दुख जरूर होता है और उसके मूल में होता है भावनात्मक लगाव, हमारी आवश्यकताएं, स्वार्थ अथवा मोह। यह तो हमारी सोच है, मन:स्थिति है, भावनात्मक लगाव है, जो हमारा कोई अपना जाने के बाद भी हमारे वजूद में शामिल होता है।

बहरहाल, किसी के चले जाने से जिंदगी रुकने वाली नहीं है, यह बात हमें समझनी होगी। किसी की याद में अंदर ही अंदर घुलना या अकेलेपन में सिसकना किसी समस्या का हल नहीं है और न ही ऐसा करके दुख से छुटकारा मिलने वाला है। यह जरूर है कि इससे हमारी मानसिक, शारीरिक व आत्मिक क्षमता का ह्रास होता है और हम वर्तमान में वह नहीं कर पाते, जो हमें करना चाहिए। कुल मिलाकर किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे बचने के लिए सबसे सरल रास्ता है, अपने मन को सकारात्मक दिशा देना।

हम अक्सर शिकायत करते हैं कि मन लगता ही नहीं। यह कहना वैसे ही है, जैसे कोई नदी के पास खड़ा होकर कहे कि शीतलता है ही नहीं। यदि शीतलता चाहिए तो नदी में उतरना पड़ेगा। किनारे पर तो उतनी ही ठंडक मिलेगी, जो हवा के साथ बहकर आती है। साहस के साथ पानी में उतर जाइए। हाथ-पैर मारिए। तैर न पाए, तो कुछ डुबकियां तो खा ही लेंगे और सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि आपमें आत्मविश्वास पैदा होगा। दिल कहेगा, चलो कुछ देर के लिए ही सही, मैं पानी में उतर सकता हूं, ठंडक पा सकता हूं। इस अथाह जलराशि से डरने की कोई जरूरत नहीं। इसमें मैंने हाथ-पांव तो मार ही लिए हैं। इसी प्रकार अपना साहस समेट जब हम किसी काम में अपने मन को लगाते हैं, तो धीरे-धीरे आनंद आने लगता है और फिर हम मानसिक परेशानियों से मुक्त होते चले जाते हैं। क्योंकि हमारा मन या तो काम में लगेगा या दुखी होता रहेगा।

यदि आप जीवन में शीतलता (या कुछ और) पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने आप पर पूरा भरोसा रखें। यह मानें कि परमात्मा और उसका असीम बल भी आपके साथ है। इसके बाद आप इस संसार रूपी समंदर के परेशानी रूपी पानी में बेधड़क उतर जाइए और सफलता-असफलता की ऊहापोह को तजकर पूरी क्षमता व तन्मयता से प्रयास कीजिए। आप पाएंगे कि कुछ नहीं से तो कुछ पाने की स्थिति में आ चुके हैं और निरंतर प्रयास करने से कुछ-कुछ करके आप बहुत कुछ पाते चले जाएंगे। परेशानियों में जितना गहरे आप उतरेंगे, जितनी जटिल दिक्कतों का सामना करेंगे, उनसे छुटकारा मिलने पर आपका आत्मविश्वास उतना ही प्रबल होता जाएगा।

बहरहाल, यदि लाख कोशिशों के बाद भी हमें वांछित सफलता नहीं मिलती, तो इसके मायने ये नहीं कि हममें योग्यता नहीं है। जरूरत इस बात की है कि हम अपने लक्ष्य को अपनी क्षमता के आधार पर निर्धारित करें। हालांकि हर इंसान में असीमित ऊर्जा होती है और आमतौर पर असंभव कुछ भी नहीं है, पर हमें अपनी ऊर्जा उस क्षेत्र में लगानी चाहिए, जिसमें हमारी दिलचस्पी हो और अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हों। यदि हम किसी काम को पूरी लगन व सकारात्मक ऊर्जा से युक्त होकर करते हैं, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि सफलता न मिले। वास्तव में होता यह है कि पहले तो हम किसी काम को करने से ही हिचकते हैं। फिर काम करते वक्त भी परिणाम की चिंता हमें सताती रहती है। यही कारण है कि किसी कार्य में हम पूरी तरह जुड़ नहीं पाते। मोह तोडऩा और कर्म से जुडऩा अनिवार्य है।

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