Monday, September 27, 2010

जल ही जीवन है


एक राजा था। वह अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध था। एक बार देश में सूखा पड़ा। राज्य में त्राहि-त्राहि मच गई। ऐसे में राजा के दरबार में दो आदमी न्याय के लिए आए। उनमें से एक ने दूसरे के खेत का पानी अपने खेत में मोड़ लिया था। राजा ने अपराधी को दस कोड़े की सजा सुनाई। तभी एक आदमी अपने पड़ोसी की शिकायत लेकर आया और बोला माहराज इसने अपने आंगन का नल खुला छोड़ दिया था, जिससे रात भार मैं सो नहीं पाया। मेरे काफी आवाज देने पर भी यह नहीं उठा। राजा ने अपराधी को बीस कोड़े की सजा सुनाई। सभी आश्चर्य में पड़ गए। राजा के प्रधानमंत्री से रहा नहीं गया। उसने राजा से कहा महाराज आपने उसे इतनी बड़ी साज क्यों सुनाई, इसका अपराध तो छोटा-सा है। इस पर राजा बोला, इस आदमी ने एक  को नहीं बल्कि कई लोगों को नुकसान पहुंचा है। जितना पानी इसने बहाया है उससे तो कई लोगों की प्यास बुझ जाती। प्रधानमंत्री को राजा की बात समझ में आ गई। सभी राजा की प्रशंसा करने लगे। आइए हम भी जल रूपी अमृत का मोल समझें और उसे बर्बाद न करें।
                                                                                                                                                अरुणिमा शर्मा

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